हम कथा सुनाते राम सकल गुणधाम की , Ham katha sunate ram sakal gundham ki

हम कथा सुनाते राम सकल गुणधाम की ,यह रामायण है पुण्य कथा श्री राम की------2


जम्बू द्वीपे ,भरत खंडे , आर्यावर्ते , भरत वर्षे , 
एक नगरी है विख्यात अयोध्या नाम की।
ये ही जन्म भूमि है परम पूज्य श्री राम की ...
हम कथा सुनाते राम सकल गुण धाम की,
यह रामायण है पुण्य कथा श्री राम की, 
यह रामायण है पुण्य कथा श्री राम की।।।


रघुकुल के राजा धर्मात्मा ,चक्रवर्ती दशरथ पुण्यात्मा ; 

संतति हेतु यज्ञ करवाया , धर्म यज्ञ का शुभ फल पाया .....
नृप घर जन्मे चार कुमारा ,रघुकुल दीप जगत आधारा ;
चारों भ्रतोंके शुभ नाम : भरत शत्रुघ्न लक्ष्मण रामा...
गुरु वशिष्ठ के गुरुकुल जाके अल्प काल विद्या सब पाके , 
पूरण हुयी शिक्षा रघुवर पूरण काम की ..... 
 यह रामायण है पुण्य कथा श्री राम की।।


विश्वामित्र महामुनि राई , इनके संग चले दोउ भाई ; 
कैसे राम तड़का मारी ,कैसे नाथ अहिल्या तारी ;
मुनिवर विश्वामित्र तब संग ले लक्ष्मण , राम ; 
सिया स्वयंवर देखने पहुंचे मिथिला धाम ........


जनकपुर उत्सव है भारी ,जनकपुर उत्सव है भारी ....
अपने वर का चयन करेगी सीता सुकुमारी .....
जनक राज का कठिन प्राण सुनो सुनो सब कोई .....
जो तोड़े शिव धनुष को , सो सीता पति होए
जो तोरे शिव धनुष कठोर ;सब की दृष्टि राम की ओर; राम विनाय्गुन के अवतार , गुरुवार की आज्ञा सिरोद्धर ..
सहेज भाव से शिव धनु तोडा ....जनक सुता संग नाता जोड़ा .....

रघुवर जैसा और न कोई ..सीता की समता नहीं होई , 

जो करे पराजित कांटी कोटि रति -काम की .....
हम कथा सुनाते राम सकल गुणधाम की
यह रामायण है पुण्य कथा सिया - राम की
अवध में ऐसा एक दिन आया


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काल चक्र ने घटना क्रम में ऐसा चक्र चलाया , 
राम-सिया के जीवन में घोर अँधेरा छाया ।।
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अवध में ऐसा .........ऐसा एक दिन आया
 निष्कलंक सीता पे प्रजा ने मिथ्या दोष लगाया..
अवध में ऐसा .ऐसा एक दिन आया......।


चलदी सिया जब तोड़के, सब स्नेह -नाते मोह के ...        

पाषाण हृदायों में न अंगारे जगे विद्रोह के ,
ममतामयी माओं के आँचल भी सिमट कर रह गए , 
गुरुदेव ज्ञान और नीति के सागर भी घाट कर रह गये ....
न रघुकुल न रघुकुल नायक , कोई न हुआ सिया का सहायक ...
मानवता को खो बैठे जब सभ्य नगर के वासी , 
तब सीता का हुआ सहायक वन का एक सन्यासी ....
उन ऋषि परम उदार का वाल्मीकि शुभ नाम ,  
सीता को आश्रय दिया , ले आये निज धाम ..
रघुकुल में कुल -दीप जलाये ..राम के दो सुत ,सिया ने जाए .....




कुश-लव अब गाते है:-

कुश :, जो एक राजा की पुत्री है , एक रजा की पुत्रवधू है और एक चक्रवाती सम्राट की पत्नी है ,
लव : वोही महारानी सीता , वनवास के दुखो में अपने दिनों कैसे काटती है उसकी करुण गाथा सुनिए
दोनो साथ मे गाते हैं-   

 जनक दुलारी कुलवधू दशरथ जी की राज रानी हो के दिन वन में बिताती है ,

रहती थी घिरी जिसे दस - दासी आठो यम ,दासी बनी अपनी उदासी को छुपाती है ...
धरम प्रवीना सती परम कुलीना सब विधि दोष -हिना जीना दुःख में सिखाती है
जगमाता हरी -प्रिय लक्ष्मी स्वरुप सिया कून्टती है धान , भोज स्वयं बनती है ;
कठिन कुल्हाड़ी लेके लकड़िया काटती है , करम लिखे को पर काट नहीं पाती है ...
फूल भी उठाना भारी जिस सुकुमारी को था दुःख भरी जीवन वोह उठाती है
अर्धांग्नी रघुवीर की वोह धरे धीर , भारती है नीर , नीर जल में नेहलाती है
जिसके प्रजा के अपवादों कुचक्र में पीसती है चाकी ,स्वाभिमान बचाती है .

पालती है बच्चों को वोह कर्मयोगिनी की भाति , स्वावलंबी सफल बनती है

ऐसी सीता माता की परीक्षा लेते दुःख देते निठुर नियति को दया भी नहीं आती है ..
.ओ ...उस दुखिया के राज -दुलारे ...
हम ही सुत श्री राम तिहारे .... 
ओ .. सीता माँ की आँख के तारे ... 
लव -कुश है पितु नाम हमारे
हे पितु भाग्य हमारे जागे , राम कथा कहे राम के आगे ...
श्री राम का चरण सेवक


पुनि-पुनि कितनी हो कही सुनाई

हिये की प्यास बुझत न बुझाई..
सीता राम चरित्त अतिपावन,
मधु सरस अरु अति मनभावन।।




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