रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट, CRR, SLR - समझे आसान भाषा में
रेपो रेट(Repo Rate):-
वह दर होती है जिसपर बैंकों को आरबीआई कर्ज देता है। बैंक इस कर्ज से ग्राहकों को लोन मुहैया कराते हैं।
रेपो रेट कम होने का अर्थ है कि बैंक से मिलने वाले तमाम तरह के कर्ज सस्ते हो जाएंगे। मसलन, गृह ऋण, वाहन ऋण आदि। या दूसरों शब्दो मे:-
बैंकों को जब नकदी की जरूरत पड़ती है तो वे रिजर्व बैंक से उधार लेते हैं। आरबीआइ इस अल्पावधि के लिए बैंकों से जिस दर पर ब्याज वसूलता है, उसे रेपो रेट कहते हैं।
रिवर्स रेपो रेट:-
वह दर होती है जिसपर बैंक जब आरबीआई के पास धन जमा करती हैं तो उस जमा धन राशि पर RBI ब्याज चूकाति है।
रिवर्स रेपो रेट बाजारों में नकदी की तरलता को नियंत्रित करने में काम आती है।
उदाहरण के लिए किसी बैंक के पास अगर किसी दिन अतिरिक्त नकदी आ गई तो उसे वह आरबीआइ में जमा कर देगा, जिसके बदले उसे रिवर्स रेपो रेट के बराबर ब्याज मिलेगा।
रिवर्स रेपो रेट हमेशा रेपो रेट से कम होती है।
नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर):-
देश में लागू बैंकिंग नियमों के तहत प्रत्येक बैंक को अपनी कुल नकदी का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना ही होता है।
इसे ही cash reserve ratio (सीआरआर) या नकद आरक्षित अनुपात कहा जाता है।
वैधानिक तरलता अनुपात(SLR):-
Statury liquidity ration :-
यह वह राशि हैं जो बैंको को अपने ग्रहको के लिये ऋण उपलब्ध कराने से पहले एक नकद या सोना या सरकार द्वारा अनुमोदित प्रतिभूतियों या ऋण बॉन्ड के रूप में बनाये रखना पड़ता हैं।
कमर्शियल बैंकों को एक खास रकम जमा करानी होती है जिसका इस्तेमाल किसी आपात देनदारी को पूरा करने में किया जाता है।
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