दवाब समूह या प्रभावक समूह या pressure groups for UPSC/BPSC

 दबाव समूह :-

यह ऐसे ही समूह है जो अपने हितों की रक्षा और वृद्धि के लिए राजनीतिक एवं प्रशासनिक क्रियाओं को प्रभावित करता है अर्थात जो सार्वजनिक नीतियों को प्रभावित करके कुछ विशेष हितों को सुरक्षित करने के लिए काम करता है ।

वे कभी भी राजनीतिक दल के साथ गठबंधन नहीं करते हैं तथा अप्रत्यक्ष रूप से काम करते हैं परंतु
दबाव समूह प्रभावा क्षमा प्रेशर ग्रुप
यह शक्तिशाली समूह है। इस तरह से यह समूह प्रशासनिक संरचना से बाहर रहकर केवल प्रभाव या दबाव डालकरअपने हितों की सिद्धी करता है। 

जैसे मजदूर संघ, व्यापारी संघ, विद्यार्थी संघ, एबीवीपी ,आर एस एस आदि।

लोकतंत्र में दबाव समूह की भूमिका:-

1. दबाव समूह मतदाताओं को शिक्षित और सूचित भी करते हैं और इस प्रकार वे राजनीतिक शिक्षा को बढ़ावा देते हैं।
2. दबाव समूह विभिन्न समुदायों की मांगों और हितों  की प्रतिनिधित्व करते हैं और इसलिए भारत जैसे एक बहुलवादी राष्ट्र के एक महत्वपूर्ण अंग भी है । यह समूह लोगों को राजनीतिक  प्रक्रिया में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करता है।
3.लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए सामाजिक परिवर्तन के उद्देश्य को प्राप्त करने में यह दबाव समूह महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ।
4. दवाब समूह के माध्यम से सरकार को यह पता चलता है कि कैसे कुछ विशेष मुद्दों पर जनता क्या अनुभव करती है और यह समूह भी बताती है कि जनता का समस्या क्या है जिससे सत्ता पक्ष को नीति निर्माण में सहायता मिलती है।
5. कई आदिवासी समूहों ने जनजातीय आबादी के शोषण के खिलाफ आंदोलन की अगुवाई की है और सरकार को विवश किया है कि वह उनके अधिकारों को सुरक्षा हेतु प्रदान करें उदाहरण के लिए वन अधिकार अधिनियम 2006।

भारत में दबाव समूह की एक बहुदलीय स्थिति में पाया जाता है यहां  लोकतंत्र में बहुदलीय व्यवस्था भी पाया जाता है उसी प्रकार यह भी दवाब समूह बहुत होते हैं
जैसे assocham, autic, आर एस एस ,एबीवीपी ,विश्व हिंदू परिषद इत्यादि।

राजनीतिक दल और दबाव समूह में अंतर:-

 1. दबाव समूह में एक व्यक्ति अनेक दबाव समूहों में एक ही समय पर जुड़ सकता है जबकि राजनीतिक दल में एक समय पर एक व्यक्ति सिर्फ एक ही दल से जुड़ेगा।
 2. दबाव समूह औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों होती है जबकि राजनीतिक दल हमेशा औपचारिक होती है।
 3. दबाव समूह के उद्देश्य सीमित होती है जबकि राजनीतिक दल का उद्देश्य सर्व व्यापक होता है । अर्थात दबाव समूह किसे खास वर्ग विशेष या किसी खास मुद्दे पर ही ले करके कंसंट्रेट या फोकस करती है जबकि राजनीति दल सभी के लिए कानून बनाते हैं।
4. दबाव समूह कभी भी सत्ता हासिल नहीं करना चाहती है जबकि राजनीतिक दल सत्ता प्राप्त करना चाहती है ।
5. दबाव समूह संवैधानिक और असंवैधानिक दोनों कार्य करते हैं जबकि राजनीतिक दल हमेशा संवैधानिक कार्य करते हैं।

दबाव समूह और राजनीतिक दलों में समानता:-

1. दोनों ही लोकतंत्र में शासन की संस्थाओं की क्रियाकलाप को प्रभावित करते हैं लोकतांत्रिक शासन प्रणाली के अंग हैं , जो परस्पर निर्भरता सहायता और सहयोग का संबंध रखते हैं। जैसे दबाव समूह अपने हितों की पूर्ति के लिए दलों का समर्थन जुटाने हैं तो वहीं दल भी समर्थन देकर अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार करते हैं ।
2. दोनों ही समाज की सामाजिक आर्थिक मांगों को संयुक्त करने का प्रयास करते हैं।
 जैसे दबाव समूह के माध्यम से सत्ताधारी दल समस्याओं से अवगत होता है और उसी के आधार पर सामाजिक न्याय के लिए कानून बना देता है।
 3. जिस प्रकार चुनाव के समय राजनीतिक दलों की उदय होता है और बाद में समाप्त हो जाते हैं उसी प्रकार से समस्या आने पर भी कई प्रकार के दबाव समूह बनते हैं और फिर बाद में समाप्त हो जाते हैं।
 4. दोनों सामाजिक अंगों को सार्वजनिक नीति में बदलने का सक्रिय प्रयास करते हैं ।
जब दबाव समूह सरकार पर दबाव डालता है तो विपक्षी दल से उसका सहयोग मिलता है ऐसी स्थिति में सत्ताधारी दल अपनी लोकप्रियता बचाने के लिए इन मांगों को सार्वजनिक नीति में बदल देता है।

दबाव समूह की समस्या:-

1.भारत में कई दवाब समूह मुख्य रूप से विभिन्न असंवैधानिक पद्धतियों के माध्यम से सरकार को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं।
 जैसे हमले , आंदोलन प्रदर्शन, सर्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना , रेलवे को उखाड़ कर फेंकना, सड़कों को तोड़ना ,सड़क जाम कर देना, इत्यादि।

2.अक्सर यह देखा जाता है कि दवाब समूह ,किसी  दल के कठपुतली के रूप में कार्य करने लगती है जिससे वास्तविक ही थी यह स्थान पर उस दलीय हित को बढ़ावा मिलता है।
 3. अक्सर दबाव समूह विशिष्ट वर्ग की पूर्वाग्रह को दर्शाता है जैसे गरीब वर्ग के नाम पर बना समूह बनाया जाता है जबकि उससे व्यक्तिगत स्वार्थ को बढ़ावा मिलता है जिससे कमजोर वर्ग का हित प्रभावित होता है।
4. मजबूत दबाव समूह हमेशा कमजोर दबाव समूह को दबाने का प्रयास करती है इससे सार्वजनिक हित प्रभावित होता है, क्योंकि लोग व्यक्तिगत स्वार्थ पर ध्यान देने लगते हैं।
 5. दबाव समूह कभी-कभी अपनी मांगों की पूर्ति के लिए आवश्यक रूप से  अप्रजातांत्रिक कार्य करने  लगती है, जिससे तनाव बढ़ते हैं ।
 6. सामाजिक राजनीतिक समस्याओं को सड़क पर करने की प्रवृत्ति के कारण दबाव समूह को लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा माना जा सकता है।
जैसे कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा परियोजना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के मामले में सुरक्षा के मुद्दा बनाकर किया गया और लोगों को एकजुट करके बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन आयोजित किए गए।
इस तरह का विरोध विकास में बाधा उत्पन्न करता है।

यह सभी आलोचनाओं के बावजूद दबाव समूहों का अस्तित्व लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए अनिवार्य है।
दवाब समूह राष्ट्रीय और विशेष हितों को बढ़ावा देते हैं तथा 
नागरिक एवं सरकार के बीच संवाद का एक जरिया बनते हैं।

Comments

POPULAR POST

ब्रिटिश शासन के अंतर्गत स्थानीय स्वायत्त शासन के विकास

भारतीय संविधान और अमेरिकी संविधान में अंतर, DIFFERENCE BETWEEN INDIAN AND AMERICA CONSTITUTION

हम कथा सुनाते राम सकल गुणधाम की , Ham katha sunate ram sakal gundham ki

प्लासी का युद्ध, पलासी के युद्ध का कारण का विश्लेषण तथा युद्ध के प्रभाव, BATTLE OF PLASHI

आम लोगों को आर्मी में शामिल करने के प्रस्ताव पर विचार कर रही सेना, मिलेंगी ये सुविधाएं

जानिए किसको क्या मिला? निर्मला सीतारमण ने की ये बड़ी घोषणाएं...

विश्वविद्यालय अब एक जुलाई से पहले भी करा सकेंगे परीक्षा, यूजीसी ने संस्‍थानों पर छोड़ा फैसला

भारत में अंग्रेजों की भू राजस्व नीति और प्रभाव