आज फिर मानवता कराह रही, कहां हो तथागत? (बुद्ध को आज जरूरत है) ------ नीरज माधव

आज फिर मानवता कराह रही, कहां हो तथागत?

आज जब पूरा विश्व भयंकर रूप से महामारी से लड़ रही है अर्थात
आज जब भयभीत मानव तीसरे विश्व युद्ध की आहट सुन-सुनकर भय और दुख के महासागर में डूब रहा है; स्त्रियों-बच्चियों के साथ अत्याचार से पूरी धरती कंपित हो रही है, तब उस दिव्य संन्यासी की याद आना बहुत स्वाभाविक है, जिसने दुखों से निवृत्ति के लिए एक मार्ग दिया; जिसने युद्ध से विरत रहने और मैत्री, करुणा का संदेश दिया

जय शंकर प्रसाद की इस लंबी कविता में बौद्ध धर्म का पूरा दर्शन सिमट आया है। महादेवी और निराला ने भी भगवान बुद्ध पर लिखा है।
 छायावाद युग के कवियों की रचनाओं से गुजरने के बाद एक स्वाभाविक जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि इस युग के लगभग सभी कवि आखिर क्यों गए होंगे तथागत और उनकी करुणा, अहिंसा की शरण में? तो बड़ा कारण सामने आता है- दो विश्व युद्धों की विभीषिका यह युग देख चुका था और दोनों एक से बढ़कर एक संहारक। मानवता कराह रही थी। हिरोशिमा, नागासाकी के बच्चे, बूढ़े, स्त्रियां हिंसक विश्व-नेताओं को उनकी विद्रूपता दिखा रहे थे, जैसे कह रहे हों- तुमने धरती को रहने लायक नहीं छोड़ा।


ऐसी क्रूरतम हिंसा के दौर में अहिंसा की एक महाक्रांति भी आई। कवियों को वह महामानव याद आया, जिसने विश्व
Buddh image
मानवता के लिए दुखों से मुक्ति, अहिंसा और करुणा का मार्ग दिखाया था; अतिवादों से बचने के लिए मध्यम मार्ग दिया था। हिंसा से ऊबे कवियों की लेखनियां उस दिव्य संन्यासी की अभ्यर्थना में उठ खड़ी हुईं। काव्य के माध्यम से विश्व को युद्ध से विरत रहने और शांति व मैत्री भाव अपनाने का संदेश दिया जाने लगा। हम बार-बार आकृष्ट होने लगे उस दिव्य संन्यासी की ओर, जो करुणा का अवतार था।

संन्यास का तात्पर्य ही होता है, संसार के माया-मोह से दूर होकर पूरी मानवता के लिए करुणा से भर उठना। संन्यास के बारे में बहुत सुंदर व्याख्या मैंने कहीं पढ़ी है, जिसका आशय था- सच्चा संन्यासी अपूर्व सुंदर होता जाता है। सांसारिक व्यक्ति भोगी होता है। जवानी में शायद सुंदर लगे, पर जैसे-जैसे बुढ़ापा आने लगता है, वह असुंदर होने लगता है। लेकिन इसके उलट संन्यासी जैसे-जैसे वृद्ध होने लगता है, वह  और  ज्यादा सुंदर होने लगता है। दरअसल, संन्यास मनुष्य के अंत:करण को सुंदर और करुणा पूरित बना देता है। 


गौतम बुद्ध भी सांसारिक मोह छोड़़ते हैं। पूरी मानवता के लिए करुणा से भर उठते हैं। वह संसार में दुख देखते हैं, और उसके निवारण के लिए बेचैन हो उठते हैं। उनके भीतर की व्यापक बेचैनी ही उन्हें सिद्धार्थ गौतम से महामानव और फिर भगवान बुद्ध की गरिमा प्रदान करती है

गौतम बुद्ध उसी सनातन करुणा और अहिंसा की बात करते हैं, जिसके कारण आदिकवि वाल्मीकि रामायण की रचना कर डालते हैं। सृजन के क्षणों में क्रौंच पक्षी के जोड़े में से एक के आखेटक द्वारा मार दिए जाने से एकाएक उनके भीतर करुणा और अहिंसा का पारावार उमड़ पड़ता है। उसी प्रकार की घटना सिद्धार्थ गौतम के जीवन में भी घटती है, जब एक हंस पक्षी आखेटक के तीर से घायल होकर उनके सामने गिरता है और उस पर रक्षक व भक्षक के बीच विवाद होता है। तब गौतम बुद्ध उसी सनातन अहिंसा और करुणा का उपदेश देते हैं।

गौतम बुद्ध के बोधगया में बुद्धत्व प्राप्त करने की बातों को सुनकर प्राय: कोई सोच सकता है- 
यह बुद्धत्व क्या हैै? क्या ज्ञान का कोई प्राचीन मानक या स्तर है, जहां पहुंचने के बाद ही किसी को बुद्ध कहा जा सके? बुद्धत्व पहले से स्थापित कोई अर्हता, कोई पदवी है? एक बार सारनाथ के तिब्बती बौद्ध मंदिर गई, तो वहां एक हजार बुद्ध मूर्तियां रखी थीं। गाइड ने जानकारी दी- अब तक चार बुद्ध हो चुके हैं, 996 होने बाकी हैं।
तात्पर्य यह कि गौतम बुद्ध पहले बुद्ध नहीं हैं। वे अपनी साधना और तपस्या के आधार पर बुद्धत्व को प्राप्त करते हैं, यानी करुणा और अहिंसा की परंपरा रूपांतरित नहीं, हस्तांतरित होती है, एक से दूसरे बुद्ध तक। आज हम फिर विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़े हो एक नए बुद्ध, एक नए करुणावतार की राह देख रहे हैं। 

नीरज माधव - साहित्यकार

POPULAR POST

ब्रिटिश शासन के अंतर्गत स्थानीय स्वायत्त शासन के विकास

भारतीय संविधान और अमेरिकी संविधान में अंतर, DIFFERENCE BETWEEN INDIAN AND AMERICA CONSTITUTION

हम कथा सुनाते राम सकल गुणधाम की , Ham katha sunate ram sakal gundham ki

प्लासी का युद्ध, पलासी के युद्ध का कारण का विश्लेषण तथा युद्ध के प्रभाव, BATTLE OF PLASHI

आम लोगों को आर्मी में शामिल करने के प्रस्ताव पर विचार कर रही सेना, मिलेंगी ये सुविधाएं

जानिए किसको क्या मिला? निर्मला सीतारमण ने की ये बड़ी घोषणाएं...

विश्वविद्यालय अब एक जुलाई से पहले भी करा सकेंगे परीक्षा, यूजीसी ने संस्‍थानों पर छोड़ा फैसला

भारत में अंग्रेजों की भू राजस्व नीति और प्रभाव

दवाब समूह या प्रभावक समूह या pressure groups for UPSC/BPSC