आंगल मैसूर युद्ध की कारण और व्याख्या Anglo mysore war cause and explanation
आंगल मैसूर युद्ध की व्याख्या:-
जब से दक्षिण में ब्रिटिश कंपनी के शक्ति का उद्भव हुआ तब कंपनी ने मैसूर को हमेशा एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में देखती थी ।
दक्षिण में मैसूर राज्य जैसी एक प्रगतिशील राज्य की उपस्थिति ब्रिटिश राज्य के आर्थिक एवं सामरिक हितों के लिए प्रबल चुनौती थी।
◆◆ यह युद्ध चार बार हुआ परन्तु अंग्रेज़ो की सफलता चौथी बार मे मिली:-
1. पहला आंग्ल मैसूर युद्ध 1767 से 1769 के बीच और यह सन्धि के साथ विराम हुआ2 दूसरा आंग्ल मैसूर युद्ध 1780 से 1784
3 तीसरा अंगलो मैसूर युद्ध 1790 से 1792
4 चौथा आंग्ल मैसूर युद्ध 1798 से 1799 इसी में टीपू की मौत हो गई थी और अब मैसूर पर पुराने वादयर वंश की स्थापना हुई।
आंग्ल मैसूर युद्ध के कारण :-
1. दक्षिण के मसाले के व्यापार में अंग्रेजो की रुचि परंतु उस पर मैसूर का अधिकार था।
2.कंपनी के दक्षिण केंद्र मद्रास पर मैसूर के द्वारा आक्रमण का खतरा बन रहा था
3. मैसूर एवं फ्रांसीसी के बीच बढ़ती हुई घनिष्ठता
विस्तार:-
टीपू |
1 .दक्षिण के मसाले व्यापार में अंग्रेजों ने अत्यधिक रुचि थे परंतु मसाला उत्पादक क्षेत्र मालाबार पर 1776 में ही हैदर अली ने अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था। मालाबार तट से कंपनी काली मिर्च, इलायची का व्यापार करती थी ।
1785 में टीपू सुल्तान ने अपनी रियासत में परने वाले बंदरगाह से चंदन की लकड़ी , मिर्च इलायची आदि पर रोक लगा दिया । सुल्तान ने स्थानीय सौदागरों को भी कंपनी के साथ व्यापार करने पर रोक लगा दिया अर्थात कंपनी को दक्षिण से मिलने वाले मसाला व्यापार के लाभ से वंचित होना पड़ा।
2. दक्षिण में कंपनी का केंद्रीय क्षेत्र मद्रास जो मैसूर के अत्यधिक निकट था तथा ब्रिटिश कंपनी को इस बात का भय था कि मैसूर के द्वारा मद्रास के संपन्न व्यापारिक क्षेत्र तथा आप आसपास के उपजाऊ क्षेत्रों पर आक्रमण या कब्जा किया जा सकता है।
विशेषकर इसलिए कि फ्रांसीसी सहायता से मैसूर ने अपने सेना को यूरोपीय पद्धति पर आधुनिकरण करना आरंभ कर दिया था
3 मैसूर राज्य की फ्रांसीसी शक्ति से अत्यधिक निकटता थी अतः ब्रिटिश कंपनी को या डर था कि ब्रिटिश फ्रांसीसी संघर्ष की स्थिति में फ्रांसीसी को मैसूर की सहायता प्राप्त होगी तथा मैसूर के सहयोग से फ्रांस अपनी कंपनी दक्षिण में अपने व्यापारिक हितों को बढ़ाने में प्रयत्न कर सकती हैं
इन सभी को प्रयुक्त कारणों से अंग्रेज आग बबूला हो गए कंपनी हैदर अली और टीपू को महत्वाकांक्षी घमंडी और खतरनाक समझती थी फलस्वरूप अंग्रेज मैसूर के बीच चार बार जंग हुई तथा श्रीरंगपट्टनम के आखिरी जंग में कंपनी को सफलता मिली।
अब जहां तक ब्रिटिश शक्ति के समक्ष में मैसूर राज की विफलता तथा टीपू का प्रश्न है तो इसे ऊपरी रूप में नहीं देखा जाना चाहिए यद्यपि यह सही है कि टीपू की विफलता में यह कारण था कि वह निजाम और मराठी जैसी क्षेत्रीय शक्ति को ब्रिटिश कंपनी से अलग कर अपने पक्ष में लाने की विफलता तथा विदेशी शक्तियों पर टीपू का अत्यधिक निर्भरता परंतु इसे ही टीपू की पराजय का मूल कारण नहीं माना जाना चाहिए अपितु उसके पराजय के मूल कारण तत्कालीन परिस्थितियों में निहित थी जो निम्नलिखित तथ्यों के आधार पर सिद्ध किया जा सकता है:-
1 हैदर अली की तुलना में टीपू को एक अत्यधिक आक्रामक के ब्रिटिश कंपनी के साथ सामना करना पड़ा था।
ब्रिटिश कंपनी ना केवल कि भारत में सर्वोच्च शक्ति बन चुकी थी वरन् वह भारत से बाहर भी उसे साम्राज्य के मोर्चे पर व्यापक सफलता मिली थी ।
2 हैदर अली के काल में ब्रिटिश कंपनी तथा मराठों के बीच प्रतिस्पर्धा चल रही थी हैदर अली ने इस स्थिति का लाभ उठाया था किंतु टीपू के काल में आज स्थिति बदल चुकी थी तथा मराठा और ब्रिटिश के बीच मित्रता तथा सहयोग कायम हो चुके थे।
3 हैदर अली के काल में ब्रिटिश फ्रांसीसी भी संघर्ष चल रहे थे परंतु टीपू सुल्तान के काल में फ्रांसीसी लगभग भारत से बाहर हो चुके थे
इस तरह उपयुक्त कारणों से टीपू की पराजय हुई तथा अपनी राजधानी श्रीरंगपट्टनम की रक्षा करते हुए वह बहादुरों की मौत मरा