भारत की वैक्सीन कूटनीति (हिंदी में)

 भारत लगातार अपने पड़ोसी देशों को कोरोना कि वैक्सीन दे रहा है। ये सारे ही  देश रणनीतिक तौर पर देश के लिए काफी अहम है माना जा रहा है कि भारत का स्वदेशी वैक्सीन बनने के साथ ही उसे कई देशों में तोहफे के तौर पर देना कूटनीति का हिस्सा हैं। यानी आज जरूरतमंदों देशों को वैक्सीन उपलब्ध कराई जाए, तो वे भविष्य में एशिया में भारत की स्थिति और मजबूत कर सकते हैं।

 एक तरफ देश में कोरोनावायरस के खिलाफ युद्ध स्तर पर टीकाकरण शुरू हो गया है, दूसरी तरफ भारत ने अपने पड़ोसी देश भूटान, मालदीव, बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार, अफगानिस्तान, श्रीलंका और मॉरीशस सहित 84 देशों को वैक्सीन की सप्लाई जनवरी से लेकर अब तक की है।भारत ने पाकिस्तान को गावी(GAVI) वैक्सीन अंतरराष्ट्रीय अलायन्स के माध्यम से भेजी हैं।

 इसके पहले महामारी के दौरान भारत ने बड़ी मात्रा में कई देशों को हाइड्रोक्लोरिक्वीन, रेमदेसीवीर और पेरासिटामोल जैसी दवाइयों के साथ दयोग्नोस्टिक किट, वेंटीलीटर, मास्क, दस्ताने और अन्य मेडिकल सामान की आपूर्ति की थी। इसके अलावा भारत कई देश पड़ोसी देशों में क्लीनिकल ट्रायल को मजबूत करने के लिए भी ट्रेनिंग प्रोग्राम चला रहा है।

 भूटान पहला देश है जिसे भारत सरकार की तरफ से सिरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया निर्मित कोविशेल्ड वैक्सीन बतौर गिफ्ट मिली है। हालांकि, इसी दिन मालदीप को भी वैक्सीन मिल गई। करोना से निपटने में मदद, दवाइयां, टीके और फंड के अलावा भूटान सरकार के अनुरोध पर भारत ने करोना की वजह से उपजी चुनौतियों का सामना करने के लिए पाँच सौ एक करोड़ का अतिरिक्त फंड भी जारी किया है।

वैक्सीन कूटनीति क्या है?

वैक्सीन कूटनीति का अर्थ है, किसी खास वैक्सीन का देश की कूटनीति स्थिति मजबूत करने में इस्तेमाल, लगभग सारे ही देश इस कूटनीतिक का  इस्तेमाल करते आए हैं ताकि आर्थिक तौर पर कमजोर या फिर रणनीतिक तौर पर अहम देशों को अपने प्रभाव में ले सकें। जैसे भारत ने वैक्सीन की बड़ी खेप मालदीव, भूटान, बांग्लादेश जैसे देशों को पहुंचाई है।

चीन भी इस मामले में पीछे नहीं है वहां वुहान में कोरोना का मामला संभाला, तब तक पूरी दुनिया में इस संक्रमण कोहराम मचाने लगा था। ऐसे में चीन बहुत से देशों को मास्क और पीपीई की भेजे थे, ये बात और  है कि मास्क की के काफी खराब क्वालिटी होने की शिकायत कई कानों से आई थी। तब दुनिया ने एक नया शब्द सुने मास्क डिप्लोमेसी। दरअसल चीन इस तरह की मदद के जरिये दुनियाभर  के देशों का मन बदलने की कोशिश कर रहा था.

वैक्सीन कूटनीति का इतिहास:-

इतिहास में इस शब्द का इस्तेमाल वैक्सीन जितना ही पुराना है। जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर पीटर जे होतज़े के मुताबिक जब कोई देश अपनी विदेश नीति का इस्तेमाल दूसरे देशों में फैली बीमारी से लड़ने के लिए वैक्सीन भेजकर करता है तो उसे वैक्सीन डिप्लोमेसी कहते हैं। ये डिप्लोमेसी तब और कारगर साबित होती है जब दोनों देश इसका इस्तेमाल आपसी मतभेद भुलाकर करते हैं।

प्रोफेसर पीटर जे होतज़े  की माने तो रूस और अमेरिका के बीच वैक्सीन कूटनीति का इस्तेमाल 1956 में शीत युद्ध के समय भी हुआ था। वर्ष 1956 में रूसी वायरोलॉजिस्ट और अमेरिकी बायोग्रो लॉजिस्ट आपसी मतभेदों को भुलाकर साथ आए थे और पोलियो के टीके को और बेहतर बनाने के लिए काम किया, अमेरिका में पोलियो के टीके को इस्तेमाल की इजाजत मिली थी, उसका पहले लाखों रुसी बच्चों पर सफल परीक्षण किया गया था.

वैक्सीन बाजार में भारत का दबदबा

दुनिया के वैक्सीन बाजार में भारत का अपना दबदबा है। भारत में फिलहाल तो दो वैक्सीन को इस्तेमाल की इजाजत मिली है लेकिन आने वाले कुछ महीनों में दो तीन और भारतीय वैक्सीन बाजार में आने की संभावना जताई जा रही है। भारत की गिनती जेनेरिक दवाओं और वैक्सीन की दुनिया में सबसे बड़े मैन्युफैक्चरर्स के रूप में होती आई है। यहां पर वैक्सीन बनाने वाली लगभग 6 बड़ी दवा कंपनी है जिनके अलावा छोटी कंपनियां भी है जिनके पास श्रमशक्ति और लाइसेंस भी है। यह कंपनियां पोलियो, मेनिनजाइटिस, निमोनिया, रोटावायरस, बीसीजी , मीजल्स जैसी बीमारियों के लिए वैक्सीन बनाकर पूरी दुनिया को भेज दी है।


भारत-चीन के बीच प्रतिस्पर्धा:-

भारत की तुलना में चीन वैक्सीन डिप्लोमेसी में मात खाता दिख रहा है। जैसा बांग्लादेश को चीनी दवा कंपनी सिनोवेक पहले एक लाख से ज्यादा वैक्सीन डोज देने वाली थी लेकिन किसी अंदरूनी वजह से ऐसा नहीं हो सका इधर इमरजेंसी इस्तेमाल के मामले में भारत वहां बाजी मार ली।

 भारत की वैक्सीन सामान्य फ्रिज के तापमान पर रखी जा सकती है और इसलिए बेहतर है। बता दें कि किसी भी वैक्सीन का असर बनाए रखने के लिए उसे एक नियत तापमान पर स्टोर करना होता है। चीन की वैक्सीन के लिए स्टोरेज तापमान काफी कम है और ज्यादातर गरीब देशों में इसके पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। इस वजह से चीन की वैक्सीन डिप्लोमेसी कमजोर पड़ रही  है.

भारत का वैश्विक देशों में बढ़ता कद:-

भारत कोवैक्स एंड गावी (Covax एंड GAVI)  के नेतृत्व वाले समूह में, जिनमें अमेरिका शामिल नहीं है, द्वारा की गई एक अन्य पहल में भी भागीदार है । उनका उद्देश्य 2021 के अंत तक 2 बिलियन खुराक की खरीद करना है इसका आधा हिस्सा पूरी दुनिया के निम्न आय वर्ग के देशों को दिया जाएगा, जिसे वे अपने यहां के उच्च जोखिम और आरक्षित समूहों विशेषकर स्वास्थ्य देखभाल करने वाले कार्यकर्ताओं को सुरक्षित करने के लिए वितरित करेंगे।


  विश्व गुरु के रूप में भारत कोविद-19 की  वैक्सीनोँ और उनके उपयोग, वितरण, विशेषकर विकासशील देशों में अपनी क्षमता और उभरती प्रोधोगिकी को साझा करने का मजबूत राजनयिक प्रयास करता है। भारत की उत्पादन सुविधाओं ने उसे विश्व में वैक्सीन के मुख्य आपूर्तिकर्ता के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया है।

कोवैक्स फैसिलिटी:-

कोवैक्स फैसिलिटी एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है। इसका उद्देश्य वैक्सीन का डेवलपमेंट, प्रोडक्शन और उसे हर व्यक्ति तक पहुंचाना है। गावी(GAVI) इस फैसिलिटी को लीड कर रही है. यह एपिडेमिक प्रिपेरेडनेस इनोवेशन और विश्व स्वास्थ संगठन का संयुक्त उपक्रम है। इस योजना के तहत सभी देशों और वैक्सीन बनाने वाले कंपनियों को एक साथ एक ही मंच पर लाना है। कोवैक्स फैसिलिटी का नेतृत्व विश्व स्वास्थ्य संगठन और गावी अलायन्स मिलकर कर रहे हैं.


गावी (ग्लोबल अलायन्स फॉर वैक्सीन एंड इम्यूनाइजेशन) एक अंतरराष्ट्रीय संघटन है, इसकी स्थापना वर्ष 2000 में की गई थी। गावी (ग्लोबल अलायन्स फॉर वैक्सीनस एंड इम्यूनाइजेशन) कई देशों की सरकारों, विश्व स्वास्थ संगठन और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने एक साथ मिलकर बनाया है। इसका उद्देश्य है दुनिया भर में वायरस जनित बीमारियों जिनमें कोवीड19 भी सम्मिलित है, की रोकथाम के लिए वैक्सीन खरीदकर वितरित करना है। यह वर्तमान में कोरोनावायरस की वैक्सीन खरीदकर उन्हें जरूरतमंदों को बांटने में मदद कर रहा है। इसके मुख्य भागीदारों में विश्व स्वास्थ संगठन, यूनिसेफ, विश्व बैंक और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन आदि शामिल है। गावी, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और इसके माध्यम से यह संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा निर्धारित सतत विकास लक्ष्यों के तहत सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता करता है।

आगे की राह:-

वैक्सीन कूटनीति संशोधित  अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एक अनोखा अवसर प्रदान करती है वैक्सीन की मांग वैश्विक है। कुछ ही देशों में इसका विकास किया जा रहा है। व्यापक स्तर पर उत्पादन की सुविधाएं भारत और चीन के समान बहुत कम ही देशों के पास है।

माना जा रहा है कि वैक्सीन कूटनीति आगे चलकर दुनिया में ताकतवर देशों की सूची में बड़ा उलटफेर कर सकती है। मिसाल के तौर पर पाकिस्तान चीन के पाले में है और भारत से लगातार तनाव बनाए हुए हैं। ऐसे में पड़ोसी मित्र देशों को तो भारत ने वैक्सीन देनी शुरू कर दी, लेकिन पाकिस्तान अभी भी चीन का रास्ता देख रहा है.

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