भारत मे साइबर सुरक्षा (हिंदी में)

 वर्तमान में विश्व भर में साइबर कमानों की स्थापना और उन्हें बढ़ावा देने के समर्थन के साथ सैन्य सिद्धांतों में परिवर्तन बड़े रणनीति के बदलाव को दर्शाता है जिसमें साइबर क्षेत्र में अवरोधक का निर्माण शामिल है।

 इसके अतिरिक्त साइबर सुरक्षा के प्रभाव का दायरा सैन्य क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह देश के शासन, अर्थव्यवस्था और कल्याण के सभी पहलुओं को शामिल करता है।

इंटरनेट उपभोक्ताओं के मामले में विश्व में अमेरिका और चीन के पश्चात भारत का तीसरा स्थान है परंतु अभी भी भारत का साइबर सुरक्षा तंत्र अपने शुरुआती स्तर पर ही है। 

इसे न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट के आधार पर समझा जा सकता है जिसमें इस संभावना को रेखांकित किया गया है कि वर्ष 2020 में मुंबई में पावर आउटेज की घटना एक चीनी राज्य प्रायोजित समूह के हमले का परिणाम हो सकती है।

 ऐसे में सैन्य, शासन और आर्थिक क्षेत्र में साइबर क्षमता की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए, भारत में शीघ्र ही एक व्यापक साइबर सुरक्षा सिद्धांत को अपनाए जाने की जरूरत है।


भारत में साइबर हमले:-

भारत, पूर्व में भी कई बार साइबर हमलों का शिकार हो चुका है।

 वर्ष 2009 में एक संदिग्ध साइबर जासूसी नेटवर्क जिसे घोस्टनेट नाम दिया गया था, को अन्य लोगों या संस्थाओं के अलावा भारत में निर्वासित तिब्बत की सरकार और कई भारतीय दूतावासों को निशाना बनाते हुए पाया गया था।

इस घटना के बाद कई हमले हुए जिन्होंने भारत को निशाना बनाया जिसमें से स्टक्सनेट भी शामिल था इसने ईरान में परमाणु रिएक्टरों को बंद करा दिया था।

 सकफ्लाई नामक एक साइबर हमले ने ना केवल सरकारी बल्कि निजी संस्थाओं को भी निशाना बनाया था। इसमें नेशनल स्टॉक एक्सचेंज को तकनीकी सहायता प्रदान करने वाली एक कंपनी भी शामिल थी।

 डीट्रेक नामक एक साइबर हमले ने वर्ष 2019 में पहले भारतीय बैंकों को और फिर बाद में कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र तमिलनाडु को निशाना बनाया था।

भारत में के साइबर सुरक्षा ढांचे से जुड़ी चुनौतियां:-

1. एकीकृत प्रतिक्रिया का अभाव होना अर्थात राष्ट्रीय स्तर पर साइबर सुरक्षा खतरों का मुकाबला करने और उन्हें काम करने के लिए एक एकीकृत प्रतिक्रिया को लागू करने में प्रभावी समन्वय, उत्तर दायित्व का निर्वहन और जवाबदेही की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

 2. आवश्यक क्षमता का अभाव भारत में हार्डवेयर के साथ-साथ सॉफ्टवेयर साइबर सुरक्षा उपकरणों एवं तकनीकों के मामले में स्वदेशी क्षमता आत्मनिर्भरता का अभाव है। यह भारत के साइबर क्षेत्र के शत्रु राष्ट्र और अराजक तत्व समूह द्वारा प्रेरित सायबर हमलो के लिए असुरक्षित बनता है।

 भारत में यूरोपीय यूनियन के सामान्य डेटा संरक्षण नियम (GDPR) या अमेरिका के क्लेरिफाइंग लॉफूल ओवरसीज यूज़ ऑफ डेटा(CLOUD) एक्ट की तरह एक सक्रिय  सुरक्षा ढांचा नहीं है।

 साइबर सुरक्षा संस्थान :-

पिछले दो दशकों में भारत में साइबर सुरक्षा की अनुकूलता पर ध्यान केंद्रित करते हुए कई मशीनरी तैयार करने का एक के महत्वपूर्ण प्रयास किया गया है।

 प्रधानमंत्री कार्यालय के अंतर्गत ही कई साइबर पोर्टफोलियो शामिल है जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद जिसकी अध्यक्षता सामान्यतः राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार  द्वारा की जाती है जो भारत की साइबर नीति परिस्थितिकी तंत्र को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

 NSA द्वारा राष्ट्रीय सूचना बोर्ड की भी अध्यक्षता की जाती है जो साइबर सुरक्षा नीति पर अंतर मंत्रालय समन्वय के लिए सर्वोच्च निकाय के रूप में कार्य करती हैं।

राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन के अंतर्गत जनवरी 2014 में स्थापित राष्ट्रीय महत्वपूर्ण सूचना अवसंरचना संरक्षण केंद्र को महत्वपूर्ण बुनियादी सूचना ढांचे के संरक्षण का कार्य सौंपा गया है।

वर्ष 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा समन्वयक कार्यालय की स्थापना की गई जो प्रधानमंत्री को रणनीति के साइबर सुरक्षा मुद्दों पर सलाह देता है।

भारत सरकार की मिनिस्ट्री ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड आईटी(MEiTY)  के अंतर्गत आने वाले स्थापित कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया टीम (CERT-in)  गैर प्राथमिकता वाले बुनियादी ढांचे से जुड़े साइबर सुरक्षा खतरों से निपटने के लिए कार्य करती है.।

केंद्रीय रक्षा मंत्रालय द्वारा डिफेंस साइबर एजेंसी (DCA) की स्थापना के संयुक्त सशस्त्र अभियानों का समन्वयक और नियंत्रण करने के लिए भारतीय सशस्त्र बलों की एक  त्रिसेवा कमान है।

इसके अतिरिक्त गृह मंत्रालय के निगरानी में कई समन्वय केंद्रों का संचालन किया जाता है जो साइबर अपराध, जासूसी, आतंकवाद के खात्मे के लिए कानूनन प्रवर्तन प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करती है।

आगे की राह:-

1. साइबर संघर्षों पर सिद्धांत- वर्तमान में स्पष्ट रूप से एक ऐसे साइबर सुरक्षा सिद्धांतों को निर्धारित करने की आवश्यकता है जो साइबर चुनौतियों से निपटने हेतु आक्रामक सायबर हमलो  के संचालन या साइबर हमलों के खिलाफ जवाबी कार्रवाई की नीति के माध्यम से इससे जुड़े सभी पहलुओं को कवर करते हो।

2. वैश्विक में बेंचमार्क स्थापित करना- भारत को राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति को साइबर स्पेस में अंतरराष्ट्रीय कानूनों के लागू होने की प्रक्रिया पर अपने मत को स्पष्ट करने के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर के रूप में इसे देखना चाहिए। यह भारत के सामरिक हितों और क्षमताओं को बढ़ाने के लिए वैश्विक प्रशासन की बहस को भी दिशा देने में सहायता कर सकता है।

3.  बहू-हित धारक दृष्टिकोण- राज्य समर्थित अराजक तत्व और उनके सहयोगियों तथा ऑनलाइन अपराधियों से होने वाले खतरों का पता लगाने एवं उनका मुकाबला करने के लिए सरकार एवं निजी क्षेत्रों के साथ सरकार के भीतर एवं राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर बेहतर समन्वय की आवश्यकता है।

4. स्वदेशी करण को बढ़ावा देना अर्थात साइबर सुरक्षा और डिजिटल संचार की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सॉफ्टवेयर के विकास हेतु अवसरों को बढ़ाने की आवश्यकता है। भारत सरकार अपने मेक इन इंडिया कार्यक्रम में साइबर सिटी अवसंरचना को शामिल करने पर विचार कर सकती है। साथ ही वर्तमान में स्थानीय आवश्यकताओं को पूर्ति के लिए एक अद्वितीय भारतीय पैटर्न पर उपयुक्त हार्डवेयर विकसित किए जाने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष:-

साइबर सुरक्षा और साइबर युद्ध पर एक स्पष्ट सार्वजनिक नीति नागरिकों के आत्मविश्वास को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी साथी यह सहयोगी देशों के प्रति विश्वास को मजबूत करने और संभावित विरोधियों को एक कड़ा तथा स्पष्ट संदेश देने में सहायक होगी जो एक अधिक स्थिर और सुरक्षित साइबर पारिस्थितिकी  तंत्र स्थापित करने के लिए मजबूत आधार प्रदान करेगा।

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