ब्रह्मचारी व्रत में स्थित होने का क्या अर्थ है अर्थात ब्रह्मचर्य क्या है तथा कैसे पालन करे?

प्रशान्तात्मा विगतभीब्रह्मचरिव्रते स्थितः ।
मन: सयंमय मच्चितो युक्त आसीत मतपर: ।।

यहां ब्रह्मचारी व्रत में स्थित होने का क्या अर्थ है?

ब्रह्मचारी का तात्विक अर्थ दूसरा होने पर भी यहां वीर्यधारण उसका एक प्रधान अर्थ है और फिर धारण अर्थ है प्रसंगा कूल भी है।

मनुष्य के शरीर में वीर्य एक ऐसा अमूल्य वस्तु है जिसकी भली-भांति संरक्षण किए बिना शारीरिक, मानसिक अथवा आध्यात्मिक किसी प्रकार का बल ना तो प्राप्त होता है ना ही उसका संचय ही होता है इसलिए आर्य संस्कृति में चारों आश्रमों में ब्रह्मचर्य प्रथम आश्रम है जो आगे तीनों आश्रम की नींव होती है।
ब्रह्मचर्य आश्रम में ब्रह्मचारी के लिए बहुत से नियम बनाए गए हैं जिनके पालन से वीर्यधारण में बड़ी भारी सहायता मिलती है।

वीर्यधारण के फायदे क्या है?

ब्रह्मचर्य के पालन से यदि वास्तव में वीर्य भली-भांति धारण हो जाए तो उस वीर्य से शरीर के अंदर एक विलक्षण विद्युत

शक्ति उत्पन्न होती है और उसका तेज इतना शक्तिशाली होता है कि उस तेज के कारण अपने आप ही प्राण और मन की गति स्थिर हो जाती है और चित्त का  एकतानप्रवाह धेय्य वस्तु की ओर स्वभाविक ही होने लगता है और इसी का नाम ध्यान है।
आजकल लोग चेष्टा करने पर भी जो ध्यान नहीं कर पाते हैं, उनका चित्त धेय्य वस्तु में नहीं लगता, इसका मुख्यता कारण यह भी है कि उन्होंने  वीर्ययधारण नही  किया है।
यद्यपि विवाह होने के पश्चात भी पत्नी के साथ संयम पूर्ण नियमित जीवन बिताना भी ब्रह्मचर्य ही हैं और उससे भी ध्यान में बड़ी सहायता मिलती है परंतु 
जिसने पहले इसे ब्रह्मचारी के नियमों का सुचारु रुप से पालन किया है और ध्यान योग की साधना के लिए समय तक जिस में शुक्र का बाह्य रूप से किसी भी प्रकार का क्षरण नहीं हुआ हो उनको ध्यान में बहुत शीघ्र और बड़ी सुविधा के साथ सफलता मिल जाती है और

 ब्रह्मचारी को सभी शुभगुण स्वतः ही मिल जाते हैं ।

ब्रह्मचारी व्रत के पालन में कौंन कौंन से नियम सहयोग करते हैं?

मनुस्मृति आदि ग्रंथों में तथा अन्य शास्त्रों में ब्रह्मचारी के लिए नियमों का सुंदर विधान किया गया है। उनमे से प्रधान है :- 

बह्मचारी नित्य स्नान करें, उबटन ना लगावे, सुरमा न लगा वे, तेल इत्र फुलेल आदि सुगंधित वस्तुओं का व्यवहार ना करें , फूलों और हार न पहनें,  नाचना गाना बजाना ना करें, जूते ना पहने, छाते ना लगावे , पलंग पर ना सोवे, जुआ ना खेले, स्त्रियों को गलत ना देखें तथा स्त्रियों सम्बंधित बात का चर्चा कभी भी ना करें, नियमित हमेशा सादा भोजन करें, कोमल वस्त्र न पाहने ,  देवता ऋषि और गुरु जन का हमेशा पूजन और सेवन करें, 

किसी से विवाद ना करें, किसी की निंदा ना करें, सत्य बोले, किसी प्रकार के तिरस्कार ना करें तथा अहिंसा व्रत का पालन करें , काम, क्रोध और लोभ का सर्वथा त्याग दें और अकेला सोवे तथा वीर्यपात कभी ना होने दें।    यह सब ब्रह्मचारी व्रत का पालन है।


 भगवान यहां ब्रह्मचारी व्रत का बात का कहकर आश्रम धर्म की ओर भी संकेत किया है और जो अन्य सभी लोग ध्यान योग का साधन करते हैं उनके लिए भी वीर्यधारण या वीर्य संरक्षण बहुत ही आवश्यक होता है और वीरधारण में उपर्युक्त नियम बहुत ही बड़े सहायक होता है ।

यही उपर्युक्त ब्रह्मचारी का व्रत है और दृढ़ता पूर्वक इसका पालन करना है ही उसमें स्थित होना है।

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