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GENDER SPECIFIC रोल ना होने दे

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  लड़का हो लड़की जन्म से लेकर पाच साल तक लगभग दोनों ही सामान रूप से संवेदनसील होते है वे भूख लगने पर एक ही तरह से रूट है कोई उनके सामने उनके प्रियजनों को मरे पिटे तो उन्हें सामान रूप से तकलीफ होती है जैसे जैसे लारके बारे होते है हमारा समाज उनके लिए संवेदनसील के मापदंडनिर्धारित करने लगते है जैसे लार्के से कहा जाता है ‘क्या बात – बात पर लार्कियो की तरह आंसू बहाते रहते हो’ मतलब उन्हें सिखाया जाता है की रोना धोना सिर्फ लार्कियो का काम है लरको लो जायदा भावुक नहीं होना चाहिए उन्हें शक्तिशाली, कठोर और आक्रामक होना चाहिए एसे में लार्के अपनी फीलिंग्स की एक्सप्रेस न कर पाने के कारण भीतर ही भीतर कुंठित होते है और यही कुंठित आगे चल कर उन्हें आक्रामक और कठोर बनाने में अहम भूमिका निभाती है इसीलिए लरको को भी खुल लार अपनी फीलिंग्स को एक्सप्रेस करने का मौका दे ताकि वे अपने दर्द के साथ साथ दूसरे को तकलीफ लो भी बेहतर तरीके से समझ सके बचपन से ही बेटियों के साथ साथ बेटो को भी यह सिखाना जरुरी है की जो गलत है वे उसे नजरंदाज करने के बजाये उसका विरोध करे चाहे खुद उनके साथ कुछ अलत हो या फिर किसी और के साथ